Ambedkar sahitya Jabti aur Bahali | Buy Ambedkar sahitya Jabti aur Bahali Online
Ambedkar sahitya Jabti aur Bahali
- Publisher: Arjak Sangh
- binding: Paperback
- Author: Ramswaroop Verma
- Price: 30/-
₹30.00 /-
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Description
Ambedkar sahitya Jabti aur Bahali
Ambedkar sahitya Jabti aur Bahali Dive into the profound world of Dr. B.R. Ambedkar with ‘Ambedkar Sahitya Jabti Aur Bahali’ by Ramsawroop Verma. This book meticulously examines the literary works of Ambedkar, highlighting his pivotal role in shaping social justice through education and advocacy. It provides a comprehensive analysis of his writings and thoughts, making it an essential read for those interested in social reform, history, and literature. Perfect for students, scholars, and anyone passionate about Ambedkar’s legacy.
अम्बेडकर साहित्य जब्ती और बहाली: एक सांस्कृतिक प्रतिरोध का इतिहास
परिचय:
अम्बेडकर साहित्य जब्ती और बहाली भारतीय सामाजिक न्याय आंदोलन का एक अनदेखा और महत्वपूर्ण अध्याय है। डॉ. भीमराव अम्बेडकर द्वारा रचित साहित्य न केवल भारत के दलित समुदाय के लिए जागरूकता और संघर्ष का स्रोत रहा है, बल्कि उसने पूरे राष्ट्र को सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक सोच की नई दिशा दी। लेकिन इतिहास में ऐसे अनेक क्षण आए जब इस क्रांतिकारी विचारधारा को दबाने का प्रयास किया गया। यही कहानी है – अम्बेडकर साहित्य जब्ती और बहाली की।
1. अम्बेडकर साहित्य क्या है?
डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने अपने जीवनकाल में संविधान निर्माण, सामाजिक सुधार, धर्म, अर्थशास्त्र, कानून और बौद्ध धर्म पर अनेक ग्रंथ लिखे। उनके प्रमुख ग्रंथों में जाति का विनाश, शूद्र कौन थे, अछूत कौन और क्यों, रिडल्स इन हिन्दुइज्म, बुद्ध और उनका धम्म आदि शामिल हैं। ये सभी ग्रंथ आज अम्बेडकर साहित्य का मूल आधार हैं।
2. साहित्य की जब्ती: क्या, क्यों और कैसे?
ब्रिटिश शासन और स्वतंत्र भारत की सत्ता दोनों ने कभी न कभी अम्बेडकर साहित्य की तीव्र आलोचना की है। विशेषतः रिडल्स इन हिन्दुइज्म जैसी पुस्तकें, जो हिन्दू धर्म की सामाजिक संरचना की आलोचना करती थीं, सरकारों और कट्टरपंथी संगठनों के निशाने पर रहीं।
अम्बेडकर साहित्य जब्ती का सबसे चर्चित मामला 1987 में सामने आया जब महाराष्ट्र सरकार ने डॉ. अंबेडकर द्वारा लिखित रिडल्स इन हिन्दुइज्म को आपत्तिजनक करार देकर पुस्तक प्रकाशन पर रोक लगा दी। इसे तत्कालीन शिवसेना और ब्राह्मणवादी संगठनों ने “धर्मविरोधी” बताते हुए हिंसक विरोध किया।
3. किसे थी आपत्ति और क्यों?
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हिंदू धर्म की आलोचना: अंबेडकर ने स्पष्ट शब्दों में वर्ण व्यवस्था, मनुस्मृति और देवी-देवताओं की कहानियों की आलोचना की थी।
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ब्राह्मणवादी संरचना पर हमला: उनकी किताबें सवर्ण मानसिकता पर सीधा प्रहार करती थीं।
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धर्म और राष्ट्र की परिभाषा: अंबेडकर धर्म को समानता और मानवता के आधार पर परिभाषित करते थे, न कि कर्मकांड के।
4. बहाली की प्रक्रिया: प्रतिरोध और पुनरुत्थान
अम्बेडकर साहित्य बहाली की प्रक्रिया जनता के संघर्ष और सामाजिक संगठनों के दबाव का परिणाम थी। जब अंबेडकरवादियों ने महाराष्ट्र सरकार की इस कार्रवाई का सड़कों पर विरोध किया, तब जाकर सरकार को किताबों को पुनः प्रकाशित करने पर मजबूर होना पड़ा।
प्रमुख घटनाएँ:
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बामसेफ, दलित पैंथर और अम्बेडकराइट ग्रुप्स ने विरोध किया।
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लाखों की संख्या में जनसभा और हस्ताक्षर अभियान हुए।
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अंततः जनता के दबाव और न्यायिक चेतावनी के कारण सरकार को झुकना पड़ा।
5. बहाली का महत्व
अम्बेडकर साहित्य बहाली केवल पुस्तकों का पुनः प्रकाशन नहीं था; यह विचारों की बहाली थी, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की जीत थी और दलित चेतना का पुनर्जागरण था।
इसके माध्यम से:
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दबे-कुचले वर्गों को उनका बौद्धिक हथियार वापस मिला।
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इतिहास में छिपा एक क्रांतिकारी विमर्श सामने आया।
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यह प्रमाणित हुआ कि विचारों को कभी भी स्थायी रूप से दबाया नहीं जा सकता।
6. क्यों जरूरी है अम्बेडकर साहित्य?
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सामाजिक न्याय की अवधारणा को समझने के लिए
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भारतीय संविधान के मूल दर्शन को जानने हेतु
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धर्म, जाति और संस्कृति की समकालीन आलोचना के लिए
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भारतीय लोकतंत्र को प्रगतिशील दिशा में ले जाने के लिए
7. वर्तमान में स्थिति
आज अम्बेडकर साहित्य जब्ती और बहाली एक ऐतिहासिक उदाहरण बन चुका है। अब कई विश्वविद्यालयों, डिजिटल लाइब्रेरी और स्वतंत्र प्रकाशकों द्वारा यह साहित्य जनसामान्य तक पहुँचाया जा रहा है।
डिजिटल संसाधन:
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सरकारी वेबसाइटों पर अब PDF फॉर्मेट में भी भीमराव अम्बेडकर पुस्तकें PDF Download के रूप में ये उपलब्ध हैं।
8. वर्तमान संदर्भ में प्रासंगिकता
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जाति आधारित भेदभाव आज भी मौजूद है।
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संविधान पर बार-बार हमले हो रहे हैं।
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मीडिया और शैक्षिक संस्थानों में अंबेडकरवाद का समुचित प्रतिनिधित्व नहीं है।
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युवाओं में इतिहास और विचारधारा की समझ कम हो रही है।
ऐसे समय में अम्बेडकर साहित्य बहाली की चर्चा करना अति आवश्यक है।
9. आगे क्या होना चाहिए?
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सिलेबस में अम्बेडकर साहित्य को अनिवार्य किया जाए
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हर राज्य की भाषा में अनुवाद ह
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अम्बेडकर पुस्तकालयों का निर्माण हो
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स्कूलों में अंबेडकर के विचारों पर प्रोजेक्ट आधारित लर्निंग शुरू हो
10. निष्कर्ष नहीं, संदेश:
अम्बेडकर साहित्य जब्ती और बहाली केवल एक ऐतिहासिक तथ्य नहीं है, यह एक चेतावनी है – विचारों से डरने वाली सत्ता कभी टिक नहीं सकती। और एक प्रेरणा भी – अगर जनता संगठित हो, तो दबे हुए शब्दों को भी दोबारा आवाज़ दी जा सकती है।
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