Annihilation Of Caste Pdf Hindi Free Download | Jati Ka Vinash pdf | Jaat Paat ka Vinash Pdf
Annihilation Of Caste Pdf Hindi Free Download, Jati Ka Vinash, Jatibhed ka Uchhed, Jaat Paat ka Vinash Hindi Pdf
- Language: Hindi
- Format: Pdf
- Price: Free
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Description
Annihilation Of Caste Pdf Hindi, Jati Ka Vinash, Jatibhed ka Uchhed, Jaat Paat ka Vinash
भारतीय समाज सदियों से जातिवाद जैसी सामाजिक बुराई से जूझ रहा है। इस सामाजिक ढांचे को चुनौती देने का साहस जिस ग्रंथ ने किया, वह था Annihilation of Caste, जिसे हिंदी में Jati ka Vinash, Jatibhed ka Uchhed और Jaat Paat ka Vinash के नाम से भी जाना जाता है। यह ग्रंथ केवल एक किताब नहीं, बल्कि सामाजिक क्रांति की धधकती चिंगारी है, जिसे डॉ. भीमराव अंबेडकर ने 1936 में लिखा था।
📚 Annihilation of Caste का ऐतिहासिक प्रसंग
1936 में लाहौर के जात-पात तोड़क मंडल ने अंबेडकर को आमंत्रित किया था। उन्होंने जो भाषण तैयार किया था, वह इतना क्रांतिकारी था कि आयोजकों ने उसे अस्वीकार कर दिया। अंबेडकर ने इसे स्वयं प्रकाशित किया, जिसका नाम रखा – Annihilation of Caste। यही रचना बाद में Jati ka Vinash, Jatibhed ka Uchhed और Jaat Paat ka Vinash जैसे नामों से अलग-अलग भाषाओं में प्रकाशित हुई।
🔍 अंबेडकर की मुख्य बातें
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जाति व्यवस्था मानवता के खिलाफ है।
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शास्त्रों की वैधता पर सवाल उठाने से ही जातिभेद मिट सकता है।
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हिंदू धर्म में सुधार असंभव है जब तक जाति बनी रहे।
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समानता, स्वतंत्रता और बंधुत्व तभी संभव है जब जाति का उन्मूलन हो।
🪔 क्यों पढ़ना चाहिए Annihilation of Caste?
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यह ग्रंथ भारतीय समाज के ढांचे की असलियत को उजागर करता है।
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इसमें अंबेडकर का बौद्धिक और नैतिक विद्रोह दिखाई देता है।
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यह सभी जातियों के युवाओं के लिए चेतना का माध्यम है।
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Annihilation of Caste, Jati ka Vinash, Jatibhed ka Uchhed, और Jaat Paat ka Vinash पढ़ने से जातिवाद की जड़ों को समझा जा सकता है।
📘 विभिन्न संस्करण
संस्करण का नाम | भाषा | प्रकाशक |
---|---|---|
Annihilation of Caste | अंग्रेज़ी | Navayana, Critical Edition with Arundhati Roy |
Jati ka Vinash | हिंदी | बुद्धिस्ट लिटरचर पब्लिशर्स, जनसंस्कृति प्रकाशन आदि |
Jatibhed ka Uchhed | हिंदी | Forward Press |
Jaat Paat ka Vinash | हिंदी | बहुजन साहित्य प्रकाशक |
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📣 सामाजिक प्रभाव
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Annihilation of Caste आज भी भारत के विश्वविद्यालयों, आंदोलनों, और बहुजन संगठनों में सबसे अधिक पढ़ी जाने वाली पुस्तक है।
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इसने बौद्ध धर्म में धर्मांतरण आंदोलन को गति दी।
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Jati ka Vinash, Jatibhed ka Uchhed, और Jaat Paat ka Vinash आज भी दलित चेतना के केंद्रीय ग्रंथ माने जाते हैं।
“जाति का विनाश” (Annihilation of Caste), “जातिभेद का उच्छेद”, और “जात-पात का विनाश” – ये तीनों शीर्षक एक ही मूल ग्रंथ को संदर्भित करते हैं, जो डॉ. भीमराव अंबेडकर द्वारा लिखा गया एक क्रांतिकारी, ऐतिहासिक और वैचारिक दस्तावेज़ है। यह ग्रंथ भारत में जाति प्रथा के विनाश की आवश्यकता और उस पर आधारित सामाजिक व्यवस्था के खिलाफ अंबेडकर के तीव्र विचारों को प्रस्तुत करता है।
🔷 पृष्ठभूमि और इतिहास:
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1936 में डॉ. अंबेडकर को “जात-पात तोड़क मंडल”, लाहौर द्वारा आमंत्रित किया गया था, ताकि वे उनके वार्षिक अधिवेशन में भाषण दें।
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अंबेडकर ने जो भाषण तैयार किया, वह इतना क्रांतिकारी था कि आयोजकों ने उसे मंच से पढ़ने की अनुमति नहीं दी।
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इसके बाद अंबेडकर ने वह भाषण एक पुस्तिका के रूप में प्रकाशित किया – जिसका नाम था: “Annihilation of Caste” (जाति का विनाश)।
🔷 मुख्य विषयवस्तु:
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जाति प्रथा का बौद्धिक खंडन – अंबेडकर बताते हैं कि जाति कोई प्राकृतिक व्यवस्था नहीं है, बल्कि यह सामाजिक रूप से थोपी गई असमानता है।
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धर्म और शास्त्रों की भूमिका – वे खुलकर कहते हैं कि हिंदू धर्मग्रंथ, विशेषकर मनुस्मृति, जातिवाद को धार्मिक वैधता प्रदान करते हैं।
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ब्राह्मणवाद पर तीखा हमला – अंबेडकर ब्राह्मणवादी मानसिकता को समाज के विभाजन और दलितों की दुर्दशा का मूल कारण मानते हैं।
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सामाजिक सुधार बनाम धार्मिक सुधार – वे मानते हैं कि धर्म में सुधार किए बिना समाज में बदलाव संभव नहीं है।
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राजनीतिक स्वतंत्रता बनाम सामाजिक स्वतंत्रता – अंबेडकर कहते हैं कि राजनीतिक आज़ादी तब तक अधूरी है जब तक सामाजिक समानता नहीं मिलती।
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गांधीजी की आलोचना – अंबेडकर ने गांधीजी की वर्ण व्यवस्था को समर्थन देने वाली सोच की कड़ी आलोचना की और उन्हें सामाजिक क्रांति में बाधक बताया।
🔷 भाषा और शैली:
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इस ग्रंथ की भाषा अत्यंत तर्कपूर्ण, वैज्ञानिक, और भावनात्मक रूप से तीव्र है।
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यह लेखन क्रांतिकारी दलित चेतना को जन्म देता है।
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इसमें दृढ़ता के साथ सुधारवादी कदम सुझाए गए हैं, जैसे कि:
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अंतरजातीय विवाह
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अंतरजातीय भोजन
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धर्म का बहिष्कार या परिवर्तन
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🔷 “जाति का विनाश” का प्रभाव:
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यह ग्रंथ आज भी दलित आंदोलन का वैचारिक आधार है।
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इसे प्रगतिशील बुद्धिजीवियों, छात्र संगठनों, और सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा पढ़ा और प्रचारित किया जाता है।
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इसे Forward Press, Navayana Publications, और Bahujan साहित्य प्रकाशकों ने पुनः प्रकाशित कर आम जन तक पहुँचाया है।
🔷 प्रसिद्ध संस्करण और अनुवाद:
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Navayana Publication द्वारा प्रकाशित संस्करण में अरुंधति रॉय की भूमिका “The Doctor and the Saint” अत्यधिक चर्चित है।
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इसे हिंदी में “जाति का विनाश”, “जातिभेद का उच्छेद”, “जात-पात का विनाश” जैसे विभिन्न नामों से अनुवाद और पुनः प्रकाशित किया गया है।
🔷 आधुनिक संदर्भ में प्रासंगिकता:
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जातिवाद आज भी भारतीय समाज में मौजूद है – शिक्षा, राजनीति, रोजगार, विवाह सभी क्षेत्रों में।
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जाति का विनाश आज के दौर में भी युवाओं, छात्रों, और सामाजिक आंदोलनों के लिए प्रेरणा स्रोत है।
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यह ग्रंथ सामाजिक परिवर्तन के लिए नीति निर्माण, वैचारिक स्पष्टता, और सामाजिक एकता की दिशा में मार्गदर्शक है।
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