Brahmanvad ki aad me Gulamgiri | Buy Gulamgiri Book In Hindi
Brahmanvad ki aad me Gulamgiri
- Binding: Paperback
- Language: Hindi
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Description
Brahmanvad ki aad me Gulamgiri | Buy Gulamgiri Book In Hindi
ब्राह्मणवाद की आड़ में गुलामगीरी
ब्राह्मणवाद एक सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था है जो भारतीय समाज में प्रचलित है। इस व्यवस्था में ब्राह्मणों को सबसे ऊँचा और प्रमुख स्थान दिया जाता है, जबकि अन्य वर्णों को निचला स्थान प्राप्त करना पड़ता है। इस प्रकार का व्यवस्थापन गुलामी के सिद्धांत के खिलाफ है, जहां एक व्यक्ति को दूसरे व्यक्ति के अधीनता में रहना पड़ता है।
गुलामगीरी एक अन्यायपूर्ण और न्याय के विपरीत व्यवस्था है, जहां एक व्यक्ति को उसकी स्वतंत्रता और अधिकारों से वंचित कर दिया जाता है। यह एक अधिकारों की चीन लेने वाली प्रक्रिया है और व्यक्ति को उसकी मूल इच्छाओं और स्वाभाविक गुणों से वंचित कर देती है।
ब्राह्मणवाद की आड़ में गुलामगीरी एक विरोधाभासी और न्यायपूर्ण व्यवस्था है। इसके तहत, अन्य वर्णों को न्याय और समानता से वंचित किया जाता है और उन्हें ब्राह्मणों की अधीनता में रहना पड़ता है। यह एक सामाजिक और आर्थिक न्याय के खिलाफ है और समाज के विकास और समृद्धि को रोकती है।
गुलामगिरी पुस्तक पर विस्तृत लेख
प्रस्तावना
क्या आप जानते हैं कि भारत में भी एक समय जातिगत गुलामी वैसी ही थी जैसी अमेरिका में नस्लीय गुलामी? यही सवाल उठाया था एक क्रांतिकारी लेखक ने – महात्मा ज्योतिबा फुले ने। उनकी कालजयी कृति “गुलामगिरी” आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी 1873 में थी।
गुलामगिरी पुस्तक का परिचय
गुलामगिरी केवल एक पुस्तक नहीं, बल्कि एक आंदोलन की शुरुआत थी। यह पुस्तक 1873 में प्रकाशित हुई थी। इसका उद्देश्य था – ब्राह्मणवाद की पोल खोलना और शूद्रों को उनकी गुलामी का बोध कराना।
गुलामगिरी किसने लिखी?
इस पुस्तक को महात्मा ज्योतिबा फुले ने लिखा।
वह एक समाज सुधारक, शिक्षक और महान विचारक थे। उन्होंने जीवनभर शूद्रों, अछूतों और स्त्रियों के अधिकारों के लिए संघर्ष किया।
गुलामगिरी क्यों लिखी गई थी?
ज्योतिबा फुले ने यह पुस्तक समाज में फैली ब्राह्मणवादी मानसिक गुलामी के विरुद्ध लिखी।
अमेरिका में दासप्रथा के खात्मे से प्रेरित होकर उन्होंने भारत के शूद्रों की सामाजिक गुलामी को उजागर किया। उन्होंने 16 निबंधों में यह बताया कि कैसे धार्मिक ग्रंथों के नाम पर शूद्रों को ग़ुलाम बनाया गया।
गुलामगिरी पुस्तक का विषय क्या है?
इस पुस्तक का मुख्य विषय है – ब्राह्मणों द्वारा फैलाई गई सामाजिक गुलामी का विरोध।
ज्योतिबा फुले ने बताया कि कैसे “अर्जुन को युद्ध सिखाने वाले ब्राह्मणों” ने असली युद्ध शूद्रों पर थोपा और उन्हें आत्महीन बना दिया।
गुलामगिरी शब्द से तात्पर्य
गुलामगिरी का अर्थ केवल शारीरिक गुलामी नहीं, बल्कि मानसिक और सामाजिक गुलामी है।
ज्योतिबा फुले ने दर्शाया कि ब्राह्मणों ने धर्मग्रंथों का उपयोग कर शूद्रों को यह यकीन दिला दिया कि वे जन्म से ही नीच हैं।
गुलामगिरी का समाज पर प्रभाव
इस पुस्तक ने महाराष्ट्र के शूद्रों और महिलाओं में जागरूकता पैदा की।
यह पहली पुस्तक थी जिसमें भारत की जातिवादी व्यवस्था को तर्क और ऐतिहासिक तथ्यों के साथ चुनौती दी गई।
पुस्तक की भाषा और शैली
गुलामगिरी में भाषा सरल है लेकिन विचार तीव्र हैं।
शैली में व्यंग्य है, तर्कशक्ति है और गहरी पीड़ा भी। फुले ने अपनी बात को निबंधों, संवादों और ऐतिहासिक उदाहरणों से स्पष्ट किया है।
गुलामगिरी की प्रमुख शिक्षाएँ
शिक्षा सभी के लिए समान रूप से आवश्यक है।
धार्मिक पाखंड का विरोध करें।
स्त्रियों और शूद्रों को संगठित होकर लड़ाई लड़नी चाहिए।
गुलामगिरी की आलोचना और समर्थन
रूढ़िवादी ब्राह्मणों ने इसका कड़ा विरोध किया।
लेकिन आधुनिक दलित चिंतकों, विद्वानों और समाज सुधारकों ने इसे सामाजिक क्रांति की नींव माना।
गुलामगिरी आज के संदर्भ में
आज भी जब जातिवाद, भेदभाव और आरक्षण विरोध होता है, तब गुलामगिरी जैसी रचनाएँ हमें याद दिलाती हैं कि यह संघर्ष नया नहीं है।
गुलामगिरी और संविधान की समानता
भारत का संविधान – “समानता, स्वतंत्रता, और बंधुत्व” की जो बात करता है, उसकी जड़ें फुले की गुलामगिरी में हैं।
डॉ. भीमराव अंबेडकर ने भी गुलामगिरी से गहरी प्रेरणा ली थी।
गुलामगिरी पर आधारित प्रमुख उद्धरण
“शूद्रों! अब और मत झुको, अब तुम जागो और अपने अधिकारों के लिए लड़ो।”
“जो लोग तुम्हें भगवान का डर दिखाकर गुलाम बनाते हैं, वे ही असली शैतान हैं।”
FAQ’s
प्रश्न 1: गुलामगिरी किसने लिखी?
उत्तर: गुलामगिरी पुस्तक महात्मा ज्योतिबा फुले ने लिखी।
प्रश्न 2: गुलामगिरी पुस्तक का लेखक कौन है?
उत्तर: इस पुस्तक के लेखक महात्मा ज्योतिबा फुले हैं।
प्रश्न 3: गुलामगिरी का मुख्य विषय क्या है?
उत्तर: सामाजिक गुलामी, विशेषकर ब्राह्मणवादी व्यवस्था द्वारा शूद्रों की मानसिक गुलामी।
प्रश्न 4: गुलामगिरी कब लिखी गई थी?
उत्तर: यह पुस्तक वर्ष 1873 में प्रकाशित हुई थी।
प्रश्न 5: गुलामगिरी पुस्तक का संदेश क्या है?
उत्तर: यह पुस्तक सामाजिक समानता, शिक्षा का अधिकार, और धार्मिक पाखंड का विरोध करने का संदेश देती है।
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