RSS Aur Bahujan Chintan Book In Hindi
RSS Aur Bahujan Chintan Book In Hindi
- Language: Hindi
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Description
RSS Aur Bahujan Chintan Book In Hindi
RSS और बहुजन चिंतन पुस्तक
यदि आप भारतीय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और बहुजन चिंतन के बारे में अधिक जानना चाहते हैं, तो यह पुस्तक आपके लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन हो सकती है। यह पुस्तक RSS के विचारधारा और बहुजन चिंतन के विभिन्न पहलुओं को समझने में मदद करेगी।
RSS vs BJP के बारे में
RSS भारतीय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का एक संगठन है जो 1925 में डॉ. केशव बलिराम हेगड़ेवार द्वारा स्थापित किया गया था। यह संगठन भारतीय संस्कृति, धर्म, समाज और राजनीति को प्रशंसा करता है और राष्ट्रीय एकता और विकास के लिए कार्य करता है। BJP इसकी राजनीतिक शाखा है, जिसे भारतीय जनता पार्टी भी कहते हैं। यह पुस्तक RSS की विचारधारा, इतिहास, संगठन और कार्यक्षेत्रों के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करेगी।
बहुजन चिंतन क्या है?
बहुजन चिंतन एक सामाजिक आंदोलन है जो भारतीय समाज में अस्पृश्यता, असमानता और अन्याय के खिलाफ लड़ाई लड़ने के लिए उठा। यह आंदोलन विभिन्न बहुजन समुदायों के अधिकारों की रक्षा करता है और सामाजिक जातिवाद, जाति और धर्म के खिलाफ लड़ाई करता है। यह पुस्तक बहुजन चिंतन की मूलभूत सिद्धांतों, इतिहास, आंदोलन के नेताओं और उनके योगदान के बारे में विवरण प्रदान करेगी।
इस पुस्तक के माध्यम से, आप RSS और बहुजन चिंतन के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त कर सकते हैं और उनके महत्वपूर्ण सिद्धांतों को समझ सकते हैं। यह पुस्तक राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विचारधाराओं के बारे में आपकी समझ को विस्तारित करेगी।
आरएसएस हिंदू राष्ट्र का जागरण अभियान किन शब्दों में करता है?
‘हिन्दू राष्ट्र जागरण अभियान’ पत्रक का आरंभ आरएसएस इन शब्दों से करता है-
‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन है, जिसके महत्व को समझने वाले उसके हितैषी उसको देश की शक्ति समझकर आवश्यक मानते हैं, तो विरोधी सांप्रदायिक और धर्माध। देश के शत्रुओं को वह आक्रामक लगता है। आखिर संघ है क्या? क्यों और कैसे शुरू हुआ? इसकी विचारधारा, प्रेरणा और जीवन मूल्य क्या है?”
वह आगे कहता है-
‘डॉ. हेडगेवार जी (संघ के संस्थापक) के मन में एक प्रश्न उभरता था कि अपना देश सभी गुणों से युक्त है, तो क्या कारण है कि बार-बार विदेशियों के सम्मुख हम अपमानित होते हैं, यदि सबके प्रयासों से स्वतंत्रता मिली, तो क्या उसकी रक्षा संभव हो सकेगी?’
इस सही सवाल का जो जवाब आरएसएस ने दिया है, वह भटकाने वाला है। अगर हमारा देश सभी गुणों से युक्त होता, तो उसे बार-बार अपमानित होना ही नहीं पड़ता और वह मुसलमानों तथा अंग्रेजों का गुलाम भी नहीं बनता। लेकिन, अगर (बकौल आरएसएस) भारतवासी विदेशियों से बार-बार अपमानित हुए और गुलाम बने; तो स्पष्ट है कि अपना देश उन गुणों से युक्त नहीं था, जो देशवासियों को सम्मान की ओर ले जाता और मुसलमानों तथा अंग्रेजों का गुलाम बनाने से रोक सकता।
तब यह क्यों न माना जाए कि हमारे देश में कमजोरियां थीं? अब सवाल यह है कि वे कमजोरियां क्या थीं? आरएसएस उन कमजोरियों को बताना नहीं चाहता और उन पर जानबूझकर परदा डालता है। इसका कारण यह है कि वे कमजोरियां उस हिंदू धर्म की हैं, जिसे वह हिंदुत्व का नाम देकर राष्ट्रवाद की राजनीति कर रहा है।
आरएसएस और बहुजन चिंतन का क्या तात्पर्य है?
अब जिस हिंदू धर्म को आधार बनाकर वह राजनीति कर रहा है, उसमें वह खोट कैसे देख सकता है? इसलिए, वह यह स्वीकार करना नहीं चाहता कि वर्ण व्यवस्था और जाति-भेद के कारण ही देश को अपमानित और गुलाम होना पड़ा।
लेकिन, यह बहुत हैरतअंगेज और आश्चर्यजनक है कि आरएसएस ऊंच-नीच का विरोधी होने के बावजूद वर्ण व्यवस्था और जाति-भेद का समर्थन करता है। प्रमाण के लिए यहां ‘गुरुजी’ नाम से विख्यात आरएसएस के दूसरे सरसंघचालक गोलवलकर के विचारों को देखना जरूरी है। वह ऋग्वेद के पुरुष सूक्त का समर्थन करते हुए कहते हैं-
‘ब्राह्मण उसका सिर है, राजा हाथ है, वैश्य जांघ है और शूद्र पैर हैं। इसका अर्थ है कि जिनके यहां ये चार वर्णों की व्यवस्था है, वही हिंदू हमारे भगवान हैं। ईश्वर के बारे में ऐसी सर्वोच्च धारणा ही राष्ट्र की हमारी अवधारणा की अंतर्वस्तु है।’
यह कितना दिलचस्प है कि आरएसएस के दर्शन में वर्ण व्यवस्था ईश्वर की सर्वोच्च धारणा है। और यही वर्ण व्यवस्था उसके हिंदू राष्ट्र की अवधारणा है। गोलवलकर के ये शब्द देखिए-
‘जाति व्यवस्था की सभी बुराइयां आज की तुलना में उस काल में कम नहीं थीं, और इसके बावजूद हम एक विजयी वैभवशाली राष्ट्र थे। क्या जाति प्रथा के बंधन, अशिक्षा की समस्या आदि आज की तरह ही सख्त नहीं थी; जब शिवाजी महाराज की अगुआई में हिंदू राष्ट्र के महान उभार का यह देश साक्षी था।
आरएसएस के लिए शिवाजी इसलिए हिंदू राष्ट्र का उभार हैं, क्योंकि उनके मूल में मुस्लिम-विरोध है। शिवाजी ने मुस्लिम शासकों के विरुद्ध युद्ध किया था और हिंदू मराठा राज की स्थापना की थी। आरएसएस के लिए यह गौरव राष्ट्र इसलिए भी है, क्योंकि उसका (मराठा राज का) नेतृत्व ब्राह्मणों के हाथ में था।
शाहू महाराज की मृत्यु के बाद मराठा साम्राज्य पूरी तरह ब्राह्मण राज में परिवर्तित हो गया था। इसी मराठा राज से आगे चलकर पेशवाई राज का जन्म हुआ था। इस ब्राह्मण-राज ने निम्न जातियों और स्त्रियों पर जुल्म करने की पूरी आजादी दी थी, जिसके बारे में धनंजय कीर ने लिखा है कि-
‘शासक समझते थे कि निम्न वर्गों के लोग सिर्फ शासकों की गुलामी के लिए पैदा हुए हैं। इसलिए जब 1818 में मराठा राज्य का पतन हुआ, तो लोगों ने कोई आंसू नहीं बहाया था। जो गरीबों को पीसता है, भगवान की चक्कियां उसे पीस देती हैं। जब अंग्रेजों ने आतंक और यातना के ब्राह्मण-राज का सफाया किया, तो उस दिन आम जनता के लिए आजादी का नया सूरज निकला था।’
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लेकिन आरएसएस के लिए अगर वह आज भी गौरवशाली हिंदू राष्ट्र है, तो उसका पतन क्यों हुआ ? उसके पतन पर लोगों को खुशी क्यों हुई? ऐसा नहीं है कि लोगों को शोक नहीं हुआ हो; जरूर शोक हुआ होगा। पर, वे शोकाकुल लोग ब्राह्मण ही रहे होंगे, जिनका प्रभुत्व खत्म हो गया था।
लेकिन, आरएसएस के नेता यह मानने को तैयार नहीं हैं कि वर्ण व्यवस्था के तहत निम्न वर्गों और स्त्रियों को अधिकार-विहीन रखने के कारण ही हिंदू अपमानित और गुलाम हुए। वे बराबर यही राग अलाप रहे हैं कि हिंदू सामाजिक संवेदना, राष्ट्रीय भावना और कर्तव्यबोध से अनुप्राणित नहीं थे; इसलिए अपमानित हुए.
क्या वर्ण व्यवस्था हिंदुओं में ये तीनों चीजें पैदा करती है? क्या ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र-अतिशूद्र की सामाजिक संवेदना एक जैसी हो सकती है? क्या उनके सुख एक जैसे हो सकते हैं?
क्या शूद्र-अतिशूद्र के दुःख ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य के दुःख एक जैसे हो सकते हैं? और क्या इनमें से कोई भी सबमें पराधीन स्त्री की वेदना का अनुभव करता है? क्या वर्ण व्यवस्था में कोई भी वर्ण संवेदना के स्तर पर एक-दूसरे से जुड़ा है? क्या उसमें हिंदुत्व या राष्ट्रीयत्व को पैदा करने का कोई तत्त्व है? क्या आरएसएस के नेता बताएंगे कि वर्ण व्यवस्था में लोगों को बंधुता की भावना से जोड़ने वाला कौन-सा गुणसूत्र है? आरएसएस का कोई भी नेता इन सवालों का जवाब नहीं दे सकता।
जिस अंतिम पेशवा शासक बाजीराव के काल में सूखे और अकाल में पी लगान न देने वाले किसानों के बच्चों पर खौलता हुआ तेल डाल दिया जाता था, उन किसानों और उनके जले हुए बच्चों में कौन-सी सामाजिक संवेदना और राष्ट्रीय भावना पैदा हो सकती थी?
जिस हिंदू राज में अकाल के दौरान ब्राह्मणों की मदद करने के सिवाय सारी आम आबादी को भूखा मरने के लिए छोड़ दिया गया हो; उस आबादी में जो लोग जिंदा बच गए होंगे, उनकी सामाजिक संवेदना और राष्ट्रीय भावना क्या हो सकती थी?
वे किस कर्तव्य-बोध से हिंदुत्व के प्रति अनुप्राणित हो सकते थे? इसे आज के हवाले से भी समझा जा सकता है कि गाय और गोमांस के नाम पर आरएसएस का फैलाया हुआ जो जुनून दलितों और मुसलमानों की बर्बरता पूर्वक हत्याएं कर रहा है; क्या वे समुदाय हिंदुत्व से जुड़ेंगे? क्या उनमें कोई राष्ट्रीय भावना पैदा होगी? और क्या हिंसा फैलाने वाले हिंदू उनकी सामाजिक संवेदना में हो सकते हैं?
किसने हिन्दू राष्ट्र की बुनियाद डाली थी?
शिवाजी ने जिस हिंदू राष्ट्र की बुनियाद डाली थी, उसमें निम्न वर्गों और स्त्रियों को शिक्षा का अधिकार नहीं था। यह अधिकार अंग्रेजों ने ही पहली बार जनता को दिया था।1813 के चार्टर के अंतर्गत पहली बार शिक्षा को राज्य का विषय बनाया गया था। उससे पहले शिक्षा राज्य की जिम्मेदारी नहीं थी और शिक्षण केंद्रों में केवल ब्राह्मण और राजकुमार ही पढ़ा करते थे।
आरएसएस और हिन्दू राष्ट्र की कल्पना में दलितों के साथ कैसा व्यवहार होगा?
आरएसएस जिस हिंदू राष्ट्र की परिकल्पना पर काम कर रहा है, उसमें यह स्पष्ट नहीं है कि वह राष्ट्र दलितों, आदिवासियों और अल्पसंख्यक समुदायों के साथ कैसा व्यवहार करेगा? हालांकि वह पूरा नियंत्रण सवर्णों के हाथ में ही रखता है। इसीलिए, डॉ. आंबेडकर ने कहा था कि हिंदू राज को रोकना होगा। क्योंकि, वह वर्ण-धर्म बाला ब्राह्मण-राज ही हो सकता है; जो लोकतंत्र विरोधी होगा।
क्या आरएसएस की नजर में जातिवाद अवगुण है?
आरएसएस की दृष्टि में जातिवाद अवगुण नहीं है, बल्कि गुण है; हिंदुत्व को मजबूत बनाता है। उसके अनुसार, जातिवाद के कमजोर होने सेही राष्ट्र कमजोर होता है। राष्ट्र से मतलब यहां देश से नहीं समझ लेना हिए जिसका आरएसएस भ्रम फैलाता है। वरन, राष्ट्र का मतलब हिंदू से है। हिन्दू जाति व्यवस्था के मजबूत होने से मजबूत और कमजोर होने से कमजोर होती है।
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